हम्पी का ससिवेकालु गणेश – अखंड प्रतिमा में छिपी अनूठी कहानी



भारत की धरोहर नगरी हम्पी केवल खंडहरों और स्मारकों का शहर नहीं, बल्कि आस्था और अद्भुत कला का जीवंत दस्तावेज़ है। इन्हीं खज़ानों में से एक है ससिवेकालु गणेश मंदिर। हेमकूट पर्वत की ढलान पर बैठी भगवान गणेश की यह अखंड प्रतिमा न सिर्फ़ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि विजयनगर साम्राज्य की मूर्तिकला की अनुपम कृति भी है। करीब आठ फीट ऊँची यह मूर्ति, सरसों के दाने जैसे गोल पेट और माँ पार्वती की गोद में बैठे पुत्र गणेश के चित्रण के कारण पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों को समान रूप से आकर्षित करती है।

अखंड गणेश प्रतिमा

मंदिर का प्रमुख आकर्षण है भगवान गणेश की विशाल मूर्ति। यह प्रतिमा लगभग 7.87 फीट (2.4 मीटर) ऊँची है और एक ही चट्टान को तराशकर बनाई गई है। भगवान गणेश अर्ध-पद्मासन में विराजमान हैं और उनके चार हाथों में दंत, अंकुश, पाश तथा मिठाई का पात्र है। मूर्ति पर करंद मुकुट, मनकों का हार, चूड़ियाँ और पायल जैसी सजावट उनकी दिव्यता को और भव्य बनाती है।

प्रतिमा की पीठ पर देवी पार्वती की उकेरी गई छवि विशेष उल्लेखनीय है। इसमें वे अपने पुत्र गणेश को गोद में लिए हुए दिखाई देती हैं, जो हिंदू संस्कृति में माता-पुत्र के अटूट स्नेह का प्रतीक है।

ससिवेकालु’ नाम का रहस्य

स्थानीय कन्नड़ भाषा में ससिवेकालु का अर्थ है – सरसों का दाना। प्रतिमा के गोलाकार पेट को देखकर इसे यह नाम दिया गया। मूर्ति में पेट पर बंधा हुआ सर्प भी दिखाई देता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी ने इतना भोजन कर लिया कि उनका पेट फटने की स्थिति में आ गया। तब उन्होंने सर्प को पेट के चारों ओर बांध लिया और उसे सुरक्षित रखा। यही कथा इस प्रतिमा में मूर्त रूप लेती है।

निर्माण और ऐतिहासिक महत्व

मंदिर के समीप चट्टान पर खुदे शिलालेख से पता चलता है कि इसका निर्माण वर्ष 1506 ईस्वी में हुआ। इसे आंध्र प्रदेश के चंद्रगिरि क्षेत्र के एक व्यापारी ने विजयनगर के शासक नरसिंह द्वितीय (1491–1505 ई.) की स्मृति में बनवाया था। यह अभिलेख न केवल इस मंदिर की उत्पत्ति बताता है, बल्कि उस दौर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी उजागर करता है।

मंदिर की वर्तमान स्थिति

आज यह मंदिर सक्रिय पूजा-अर्चना का स्थल नहीं है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक आभा अब भी जीवित है। यहाँ आने वाले पर्यटक प्रतिमा की बारीक नक्काशी और मंदिर परिसर के शांत वातावरण में खो जाते हैं। यह स्थान हम्पी के अन्य भव्य मंदिरों की तुलना में छोटा अवश्य है, लेकिन अपनी विशिष्टताओं के कारण यात्रियों के लिए बेहद खास है।

क्या देखें यहाँ?

अखंड गणेश प्रतिमा – काले ग्रेनाइट की एक ही चट्टान से तराशी गई यह प्रतिमा इस स्थल का प्रमुख आकर्षण है।

पार्वती का चित्रण – मूर्ति के पीछे देवी पार्वती की प्रतिमा, जिसमें वे गणेश को गोद में लिए हुए हैं।

स्थापत्य शैली – मंदिर को घेरे हुए खुरदरे पत्थरों की दीवारें और खंभे, विजयनगरकालीन शिल्पकला का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दृश्य और वातावरण – मंदिर से हम्पी का परिदृश्य दिखाई देता है, जो इतिहास और संस्कृति में डूबने का अवसर देता है।

आध्यात्मिक आभा – सक्रिय पूजा स्थल न होने पर भी यहाँ की शांति और पवित्रता हर आगंतुक को प्रभावित करती है।

हम्पी की पहचान

हम्पी अपने भव्य खंडहरों, मंदिरों और स्थापत्य चमत्कारों के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। ससिवेकालु गणेश मंदिर इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, जो धार्मिक आस्था और कलात्मक सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

ससिवेकालु गणेश केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि धर्म, इतिहास और कला का जीवंत संगम है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति विजयनगर साम्राज्य की कलात्मक भव्यता से रूबरू होता है और साथ ही भगवान गणेश की आध्यात्मिक शक्ति व मातृ-स्नेह की अनूठी अभिव्यक्ति का अनुभव करता है।

हम्पी की यात्रा अधूरी है यदि ससिवेकालु गणेश के दर्शन किए बिना लौट आएं।

अजय कुमार बियानी, बालाजी स्काईज़, निपानिया, इंदौर

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