देश में ई-वाहनों की संख्या ऐसी रफ्तार से बढ़ रही है, जैसे मोहल्ले में शादी की बारात के आगे DJ की स्पीकर वाली गाड़ी। लेकिन जहां बारातियों को सिर्फ नाचने की चिंता होती है, वहां ई-वाहनों वालों को दो नए सिरदर्द झेलने पड़ रहे हैं—एक, चार्ज करते-करते वाहन में आग लग जाना, और दूसरा, चार्जिंग स्टेशनों का ऐसी तंग गलियों में घुस जाना जहां आदमी तो क्या, पतला खंभा भी सांस रोक कर ही निकल पाए।
जब स्कूटर बना 'फुलझड़ी'
इंदौर के मल्हारगंज इलाके में पिछले हफ्ते एक सज्जन अपने इलेक्ट्रिक स्कूटर को घर के बाहर चार्जिंग पर लगाकर आराम से चाय पी रहे थे। तभी मोहल्ले में एकदम दिवाली जैसी आवाज गूंजी—'धड़ाम! छटाक! फटाक!' पड़ोसी समझे कि कोई जलेबी वाला आ गया है, लेकिन नहीं, स्कूटर ने जलेबी की जगह खुद को ही तला हुआ बना लिया था।
समस्या ये है कि लोग स्कूटर को चार्ज तो कर देते हैं, लेकिन वायरिंग ऐसी करते हैं जैसे पुराने जमाने की फिल्म में हीरो हीरोइन के बीच दुपट्टे से कनेक्शन हो—कमज़ोर और चिंगारी वाला। और फिर तापमान 45 डिग्री हो तो बैटरी और भड़क जाती है। आखिर बैटरी भी इंसान है, वो भी गरमी में तंग हो जाती है।
गलियों में 'चार्जिंग स्टेशन' नहीं, 'ट्रैफिक जाम सेंटर'
अब बात दूसरी दिक्कत की। देश के कई शहरों में, खासकर इंदौर, बनारस और दिल्ली की पुरानी गलियों में चार्जिंग स्टेशन ऐसे लगाए जा रहे हैं जैसे आम के पेड़ के नीचे पकोड़े वाला—बिलकुल बीच रास्ते में। मोहल्ले की बिल्लियाँ तक रास्ता बदल लेती हैं, लेकिन ई-वाहन वाले वहीं खड़े होकर लाइन में लगते हैं।
गाड़ी चार्ज हो रही होती है, लेकिन मोहल्ले की आंटी का सब्ज़ी लाना, बच्चों का स्कूल जाना, और बाबा का मंदिर जानाबैटरी 100% चार्ज होने तक सभी स्थगित.
एक बार तो इंदौर के नंदानगर में ऐसी स्थिति बनी कि एक चार्जिंग स्टेशन की वजह से मोहल्ले की बारात फंस गई। दूल्हा खड़ा-खड़ा स्कूटर की बैटरी से ज्यादा गर्म हो गया। अंत में चार्जिंग स्टेशन के मालिक ने कहा—"थोड़ा इंतज़ार कर लो, गाड़ी 98% तक पहुंच गई है, फिर निकाल देंगे!"
सरकार और जनता दोनों की परीक्षा
अब बात समाधान की। सरकार ने भले ही योजना बनाई हो कि हर 3 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन हो, लेकिन ये नहीं सोचा कि वो स्टेशन हो कहां? पार्किंग है नहीं, सड़कों पर गड्ढे वैसे ही बैटरी टेस्टिंग ज़ोन बन गए हैं, और अब चार्जिंग प्वाइंट भी ट्रैफिक बाधा बनने लगे हैं।
प्रशासन को चाहिए कि चार्जिंग स्टेशन बनाने से पहले देखें कि वहां दमकल वाहन घुस सकता है या नहीं। नहीं तो कल को स्कूटर में आग लगी, और फायर ब्रिगेड वाले सिर्फ दूर से बाल्टी फेंकते दिखेंगे।
साथ ही नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। मोहल्ले के चायवाले से पूछकर चार्जिंग करना, बेमेल तारों से जोड़-तोड़ करना और रातभर पहुंच से बाहर का चार्जिंग—ये सब ‘आमंत्रण पत्र’ हैं अग्निदेव के लिए।
टेक्नोलॉजी चाहिए, लेकिन समझदारी के साथ
ई-वाहन को बढ़ावा देना समय की मांग है। पर यह बढ़ावा ऐसा नहीं हो कि वाहन तो चलता रहे लेकिन मोहल्ला जले। वाहन निर्माता भी यदि 'कम दाम' के चक्कर में घटिया बैटरी दे रहे हैं तो उन्हें भी समझना होगा कि ग्राहक अगर एक बार जल गया, तो अगली बार वो सीधे साइकिल ही खरीदेगा।
कई स्टार्टअप्स इस दिशा में नए प्रयोग कर रहे हैं, जैसे गर्मी-संवेदी बैटरी, फास्ट कूलिंग चार्जर, और मोबाइल ऐप से चार्जिंग कट-ऑफ। लेकिन जब तक उपयोगकर्ता सावधानी नहीं बरतेगा, तब तक तकनीक भी सीमित ही मदद कर पाएगी।
निष्कर्ष: वाहन ई है, जिम्मेदारी भी ई (आवश्यक) है
देश में तकनीक तेजी से बदल रही है, लेकिन उससे जुड़ी सुरक्षा और व्यवस्था को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वरना भविष्य में “इलेक्ट्रिक स्कूटर” सुनते ही बच्चों को लगेगा—“वो वाला जो आग पकड़ लेता है?”
हमें चाहिए कि ई-वाहनों को बढ़ावा देने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दें। आखिरकार, सफर का मजा तभी है जब वो सुरक्षित और सुविधाजनक हो—वरना वाहन चले न चले, मोहल्ले का धुआं जरूर उठ जाएगा।
अजय कुमार बियानी, निपानिया इंदौर
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