योगेश्वर श्रीकृष्ण का अद्भुत जीवन: 5253वें जन्मोत्सव पर विशेष


 अजय कुमार बियानी

तलाश समाचार, इंदौर

हिंदू धर्म के इतिहास में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व सबसे विलक्षण, सबसे प्रेरणादायी और सबसे बहुआयामी माना जाता है। वे न केवल एक दिव्य अवतार थे, बल्कि कुशल राजनीतिज्ञ, अद्वितीय कूटनीतिज्ञ, श्रेष्ठ योद्धा, महान दार्शनिक और करुणा के सागर भी थे। श्रीकृष्ण का जीवनकाल, उनकी लीलाएं और उनके उपदेश आज भी मानव समाज के लिए अनंत प्रेरणा स्रोत हैं।

जन्म का अद्भुत प्रसंग

शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म 3228 ई.पू. में, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को, बुधवार के दिन, मथुरा नगरी में कंस के कारागार में हुआ। उनके पिता श्री वसुदेव और माता देवकी थीं। जन्म के तुरंत बाद वसुदेव जी उन्हें यमुना पार गोकुल में नंद-यशोदा के घर छोड़ आए। इसी के साथ शुरू हुई एक ऐसी जीवन यात्रा, जो असंख्य चमत्कारों, पराक्रम और धर्मरक्षा के अद्भुत प्रसंगों से भरी हुई थी।

बाल्यकाल की अलौकिक लीलाएं

मात्र छह दिन के हुए थे कि उन्होंने पूतना नामक राक्षसी का वध कर दिया। एक वर्ष की उम्र में त्रिणिवर्त का संहार और दो वर्ष की उम्र में यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार किया। पांच वर्ष की अवस्था में कालिया नाग का मर्दन, अघासुर का वध और ब्रह्माजी के गर्व का भंग जैसी लीलाएं कर दिखाईं। सात वर्ष की उम्र में गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर धारण कर इन्द्र का अभिमान तोड़ा।

किशोरावस्था और रासलीला

आठ वर्ष की उम्र में गोपियों के साथ रासलीला, शंखचूड़ व अरिष्टासुर का वध और ‘केशव’ नाम की प्राप्ति, उनके दिव्य जीवन की झलकियां हैं। दस वर्ष की आयु में मथुरा पहुंचकर कंस का वध किया और उग्रसेन को पुनः मथुरा का राजा बनाया।

शिक्षा, विवाह और पराक्रम

अवंतिका के सांदीपनि आश्रम में मात्र 126 दिनों में संपूर्ण वेद, धनुर्वेद, अश्व व गज प्रशिक्षण तथा 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया। जीवन के 28वें वर्ष में द्वारका नगरी की स्थापना की। नरकासुर का वध कर 16,100 कन्याओं को मुक्त कर उनका सम्मानपूर्वक विवाह किया। इन्द्र से पारिजात वृक्ष लाकर द्वारका में रोपित किया।

महाभारत और गीता उपदेश

कुरुक्षेत्र युद्ध के समय, 89 वर्ष की अवस्था में, अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने ‘भगवद्गीता’ का अमर उपदेश दिया, जो आज भी जीवन का सर्वोत्तम मार्गदर्शन माना जाता है। युद्ध के बाद युधिष्ठिर के राज्याभिषेक में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंतिम समय और कलियुग का आरंभ

125 वर्ष 5 माह 21 दिन की आयु में प्रभास क्षेत्र में, दोपहर 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर उन्होंने देह त्याग किया। उनके स्वर्गारोहण के साथ ही कलियुग का आरंभ हुआ।

श्रीकृष्ण – युगों-युगों के प्रेरणास्रोत

श्रीकृष्ण का जीवन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी एक आदर्श है। उनके द्वारा सिखाया गया ‘कर्तव्य-योग’ हमें यह समझाता है कि जीवन में धर्म और कर्म का संतुलन ही सच्ची सफलता है।

इस वर्ष हम उनका 5253वां जन्मोत्सव मना रहे हैं। यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि उनके उपदेशों और जीवन मूल्यों को आत्मसात करने का संकल्प है।

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